(ग्राम चुनाव मई-१९९९)
आज सुबह-सुबह बस मे बैठा.
एक पत्रिका हाथ मे लिए,
समय काटने के लिए,
अपना मन बना रहा था.
इसी बीच एक २७ वर्षीय युवक,
आया, मेरे पैर छुए.
पैर चुने पर वाकई,
आनंद की बड़ी अनुभूति होती है.
मेरे आशीष देने से पहले,
युवक बोला,
साहब; मैं सरपंच पद के लिए
खड़ा हो रहा हूँ.
नौकरी चाकरी ढूँढते-ढूँढते,
हताश हो गया हूँ.
इसलिए सरपंछी के चुनाव मे
ज़ोर तोड़ लगाऊँगा.
सरपंच बन गया,
तो बेकारी दूर हो जाएगी.
आप नौकरी दिला नहीं सकते,
अपना अमूल्य वोट तो,
दे ही सकते हैं! मैं आवक रह गया.
**************************
बस के दूसरे स्टेशन में,
एक महिला सवार हुई.
उसने मुझे देखते ही सिर ढक लिया.
कुछ डोर सीट पर बैठ गयी.
महिला को मैं पहचानता था.
उसका पति गंजेडी था.
मारता पीटता था.
इसलिए सतना, रोटी की तलाश मे,
भाग आया करती थी.
मैने सतना शहर की गलियों में,
उसे रोटी की तलाश मे देखता था.
मुझसे बोलती नहीं थी.
मुझे देखकर सिर धक लेती थी.
उसके प्रति मेरी सहानुभूति थी.
मैं अपनी सीट से उस महिला को देख रहा था.
साड़ी; वह अच्छी पहने थी.
उसके कंधे में बैग लटका था.
मैने सोचा,
ग़रीब महिला के दिन पलते हैं,
उसके खाने पीने के दिन हैं,
मुझे अच्छा लगा.
चलो अच्छा हुआ.
सतना स्टेशन पर,
मैं अपनी सीट से उठा.
महिला भी, अपनी सीट से उठी.
मेरे सामने खड़ी हो गयी.
दोनो हाथ जोड़ लिए,
बोली;
वकील साहब,
मैं कृषि-उपज मॅंडी के लिए,
अध्यक्षी पद का,
चुनाव लड़ रही हूँ.
अपना अमूल्य मत,
मुझे दीजिएगा.
हो सके तो,
पड़ोसियों से मदद कराईएगा.
मैं अवाक रह गया.
कुछ देर बाद,
मेरे मुख से इतना ही निकला,
"ठीक है"! चलो अच्छा हुआ.
आज सुबह-सुबह बस मे बैठा.
एक पत्रिका हाथ मे लिए,
समय काटने के लिए,
अपना मन बना रहा था.
इसी बीच एक २७ वर्षीय युवक,
आया, मेरे पैर छुए.
पैर चुने पर वाकई,
आनंद की बड़ी अनुभूति होती है.
मेरे आशीष देने से पहले,
युवक बोला,
साहब; मैं सरपंच पद के लिए
खड़ा हो रहा हूँ.
नौकरी चाकरी ढूँढते-ढूँढते,
हताश हो गया हूँ.
इसलिए सरपंछी के चुनाव मे
ज़ोर तोड़ लगाऊँगा.
सरपंच बन गया,
तो बेकारी दूर हो जाएगी.
आप नौकरी दिला नहीं सकते,
अपना अमूल्य वोट तो,
दे ही सकते हैं! मैं आवक रह गया.
**************************
बस के दूसरे स्टेशन में,
एक महिला सवार हुई.
उसने मुझे देखते ही सिर ढक लिया.
कुछ डोर सीट पर बैठ गयी.
महिला को मैं पहचानता था.
उसका पति गंजेडी था.
मारता पीटता था.
इसलिए सतना, रोटी की तलाश मे,
भाग आया करती थी.
मैने सतना शहर की गलियों में,
उसे रोटी की तलाश मे देखता था.
मुझसे बोलती नहीं थी.
मुझे देखकर सिर धक लेती थी.
उसके प्रति मेरी सहानुभूति थी.
मैं अपनी सीट से उस महिला को देख रहा था.
साड़ी; वह अच्छी पहने थी.
उसके कंधे में बैग लटका था.
मैने सोचा,
ग़रीब महिला के दिन पलते हैं,
उसके खाने पीने के दिन हैं,
मुझे अच्छा लगा.
चलो अच्छा हुआ.
सतना स्टेशन पर,
मैं अपनी सीट से उठा.
महिला भी, अपनी सीट से उठी.
मेरे सामने खड़ी हो गयी.
दोनो हाथ जोड़ लिए,
बोली;
वकील साहब,
मैं कृषि-उपज मॅंडी के लिए,
अध्यक्षी पद का,
चुनाव लड़ रही हूँ.
अपना अमूल्य मत,
मुझे दीजिएगा.
हो सके तो,
पड़ोसियों से मदद कराईएगा.
मैं अवाक रह गया.
कुछ देर बाद,
मेरे मुख से इतना ही निकला,
"ठीक है"! चलो अच्छा हुआ.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें